Monday, September 28, 2015

कई रातें जाग कर, एक सुबह बनायीं है


कई रातें जाग कर, एक सुबह बनायीं है
मैंने सिर्फ तेरे लिए ओस की चादर बिछाई है

न जाने कितनो की सुन कर, ये कुछ अल्फ़ाज़ लाया हूँ
मैं सिर्फ तेरे लिए भीनी भीनी खुशबू बटोर लाया हूँ


 .... अभी आगे.…लिखना बाकी है… 

Tuesday, June 2, 2015

तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

Savitur, this is written remembering you during my visit to Mumbai in June 2015.

आधी रात फिर उठ बैठा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं।

किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।

अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं।

सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं।

गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ  मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

Thursday, May 7, 2015

पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा


पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा
स्कूल गया तो मैं बड़ा हो जायूँगा ,
फिर आपकी गोदी कैसे आऊंगा ,
कैसे उंगली पकड़ आपकी मैं बाज़ार जायूँगा ,
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा मैं स्कूल नहीं जायूँगा
स्कूल गया तो मैं भी रीति सीख जायूँगा ,
स्वाभिमान के बहाने दूर चला जायूँगा ,
कैसे फिर आपके हाथ से रोटी के निवाले खाऊंगा ,
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा
स्कूल गया तो ये संसार वास्तव हो जायेगा ,
आपकी कहानियों का राजकुमार एक प्रतियोगी हो जायेगा ,
किसी अनजान दौड़ का चूहा या फिर किसी दीवार की ईंट बन चिन जायेगा ,
कैसे फिर आपके सीने पर  सर रख सो पायूँगा
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा , मैं स्कूल नहीं जायूँगा
 मेरे बचपन को बचपना ही बने रहने दो ,
स्कूल एक साज़िश है, बड़ा होना - ये कैसी ख्वाहिश है ,
स्कूल एक भुलावा है, ये संसार छलावा है  ,
मुझे मेरे बचपन में जीने दो, कुछ भी करो पर मुझेअपनी गोदी में ही सोने दो ,
पापा , मैं स्कूल  नहीं जायूँगा , स्कूल गया तो मैं बड़ा हो जायूँगा !!!…

Thursday, January 29, 2015

मर्म धर्म कर्म श्रम


प्रिय पुत्र सवितुर,

ध्यान रखना ॥

सतयुग में मर्म प्रधान था (देव, मानव औ दानव की परिभाषा बनायीं गयी )
त्रेतायुग में धर्म प्रधान था (राम ने धर्म स्थापना की)
द्वापरयुग में कर्म प्रधान था  (कृष्ण ने कर्म को सर्वोपरि बनाया)
कलियुग में श्रम प्रधान है ।

श्रम में शर्म नहीं - क्यूंकि ये  कलियुग है इसलिए कर्म का धर्म समझो, धर्म का मर्म जानो, यथार्थ में जियो, श्रम का आनंद अनुभव करो.

तुम्हारा पिता